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आ यो वि॒वाय॑ स॒चथा॑य॒ दैव्य॒ इन्द्रा॑य॒ विष्णु॑: सु॒कृते॑ सु॒कृत्त॑रः। वे॒धा अ॑जिन्वत्त्रिषध॒स्थ आर्य॑मृ॒तस्य॑ भा॒गे यज॑मान॒माभ॑जत् ॥

English Transliteration

ā yo vivāya sacathāya daivya indrāya viṣṇuḥ sukṛte sukṛttaraḥ | vedhā ajinvat triṣadhastha āryam ṛtasya bhāge yajamānam ābhajat ||

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Pad Path

आ। यः। वि॒वाय॑। स॒चथा॑य। दैव्यः॑। इन्द्रा॑य। विष्णुः॑। सु॒ऽकृते॑। सु॒कृत्ऽत॑रः। वे॒धाः। अ॒जि॒न्व॒त्। त्रि॒ऽस॒ध॒स्थः। आर्य॑म्। ऋ॒तस्य॑। भा॒गे। यज॑मान॑म्। आ। अ॒भ॒ज॒त् ॥ १.१५६.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:156» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (दैव्यः) विद्वानों का सम्बन्धी (त्रिसधस्थः) कर्म, उपासना और ज्ञान इन तीनों में स्थित (सुकृत्तरः) अतीव उत्तम कर्मवाला (विष्णुः) विद्या को प्राप्त (वेधाः) मेधावी धीरबुद्धि सज्जन (सचथाय) धर्म सम्बन्ध को प्राप्त (सुकृते) धर्मात्मा (इन्द्राय) परमैश्वर्यवान् जन के लिये (ऋतस्य) सत्य के (भागे) सेवने के निमित्त (आर्य्यम्) समस्त शुभ, गुण, कर्म और स्वभावों में वर्त्तमान (यजमानम्) विद्या देनेवाले को (आ, अभजत्) अच्छे प्रकार सेवे और जो सबको विद्या और शिक्षा देने से (अजिन्वत्) प्राण पोषण करे, वह पूरे सुख को (आ, विवाय) अच्छे प्रकार प्राप्त हो ॥ ५ ॥
Connotation: - जो विद्वानों के प्रिय, किये को जानने-माननेवाले, सुकृति, सर्वविद्यावेत्ता जन, सत्य धर्म विद्या पहुँचाने से सब जनों को सुख देते हैं, वे अखिल सुख भोगनेवाले होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो दैव्यस्त्रिसधस्थः सुकृत्तरो विष्णुर्वेधा सचथाय सुकृत इन्द्रायर्तस्य भाग आर्यं यजमानमाभजद्यश्च सर्वान् विद्याशिक्षादानेनाजिन्वत् स पूर्णं सुखमाविवाय ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (आ) (यः) (विवाय) गच्छेत् (सचथाय) प्राप्तसम्बन्धाय (दैव्यः) विद्वत्सम्बन्धी (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (विष्णुः) प्राप्तविद्यः (सुकृते) धर्मात्मने (सुकृत्तरः) अतिशयेन सुष्ठु करोति यः (वेधाः) मेधावी (अजिन्वत्) जिन्वेत् (त्रिसधस्थः) त्रिषु यः कर्मोपासनाज्ञानेषु स्थितः (आर्यम्) सकलशुभगुणकर्मस्वभावेषु वर्त्तमानम् (ऋतस्य) सत्यस्य (भागे) सेवने (यजमानम्) विद्यादातारम् (आ) (अभजत्) सेवेत ॥ ५ ॥
Connotation: - ये विद्वत्प्रियाः कृतज्ञाः सुकृतिनः सर्वविद्याविदः सत्यधर्मविद्याप्रापकत्वेन सर्वान् जनान् सुखयन्ति तेऽखिलसुखभाजो जायन्ते ॥ ५ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वदध्यापकाऽध्येतृगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति षट्पञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तं षड्विंशो वर्ग एकविंशोऽनुवाकश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वानांना प्रिय, कृतज्ञ चांगली कृती करणारे, सर्वविद्यावेत्ते, सत्य धर्म विद्या प्राप्त करून देतात व सर्व लोकांना सुखी करतात, ते संपूर्ण सुख भोगणारे असतात. ॥ ५ ॥